बिहार के थर्मल प्लांट में एक बार फिर किसानों और पुलिस के बीच झड़प, जानिए क्या है वजह?

बक्सर के चौसा में एक बार फिर पुलिस और किसानों के बीच झड़प देखने को मिला है. बीते 20 मार्च को किसानों ने आंदोलन तेज करते हुए थर्मल पावर प्लांट के मुख्य दरवाजे को जाम कर दिया. जिसके बाद पुलिस ने उनके ऊपर लाठीचार्ज कर दिया.

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बिहार के थर्मल प्लांट

बिहार में थर्मल पावर प्लांट

बक्सर के चौसा में एक बार फिर पुलिस और किसानों के बीच झड़प देखने को मिला है. बक्सर के चौसा में थर्मल पावर प्लांट (buxar thermal plant) बनाए जाने को लेकर किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है. किसानों का आरोप है कि उन्हें इसका उचित मुआवजा नहीं मिला है. मुआवजे की मांग को लेकर किसान लगभग डेढ़ सालों से थर्मल पॉवर प्लांट के बाहर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन बीते 20 मार्च को किसानों ने आंदोलन (farmer protest) तेज करते हुए थर्मल पावर प्लांट के मुख्य दरवाजे को जाम करते हुए प्रदर्शन करने लगे.

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धरने पर बैठे किसानों को हटाने के लिए चौसा पावर प्लांट के मुख्य अधिकारियों ने स्थानीय प्रशासन से सहयोग लिया. प्रशासन ने किसानों को गेट के सामने से हटने का अल्टीमेटम जारी किया. अल्टीमेटम जारी करने के 24 घंटे बाद भी जब किसान नहीं हटे तो पुलिस ने उनके ऊपर लाठीचार्ज कर दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आक्रोश में किसानों ने पुलिस के ऊपर पथराव कर दिया. इस झड़प में दर्जनों पुलिस और किसान घायल हो गये. बक्सर एसपी के मीडिया में दिए बयान के अनुसार 20 से ज्यादा अधिकारी और पुलिसकर्मी घायल हुए थे.

क्या है किसानों की मांग

प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि वह अक्टूबर 2022 से उचित मुआवजे की मांग को लेकर धरना कर रहे हैं. लेकिन आजतक सरकार और प्रशासन उनकी बात नहीं सुन रही है. वहीं समय-समय पर उन्हें ही लाठीचार्ज और मुकदमे से धमकाया जाता है. मुआवजे की मांग को लेकर शुरू हुआ आंदोलन पिछले डेढ़ सालों कभी उग्र तो कभी शांतिपूर्ण ढ़ंग से जारी है. बीते 11 मार्च को किसानों ने पुनः आंदोलन तेज करते हुए पॉवर प्लांट के मेन गेट को जाम कर दिया.

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किसानों की 11 सूत्री मांग है जिसमें जमीन का उचित मुआवजा और प्रत्येक किसान परिवार से एक-एक सदस्य को पॉवर प्लांट में नौकरी मुख्य है. आन्दोलन उग्र करने का कारण बिना मुआवजे के फसल लगे खेतों में रेल कॉरिडोर और पाइप लाइन बिछाना भी है. चौसा मौजा के किसान इसी बात का विरोध कर रहे हैं.

किसानों की मांग

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए किसान नरेंद्र तिवारी बताते हैं “साल 2011-12 में यहां थर्मल पॉवर प्लांट बनाने के लिए जमीन अधिग्रहित किया गया और उसी के अनुसार मुआवजा भी तय किया गया. उसके बाद 2013-14 में चौगुना मुआवजा देने का प्रस्ताव केंद्र से पास हुआ. लेकिन उस समय कागज नहीं बना हमलोग मुआवजा नहीं लिए. दुबारा जब बनारपुर में 1058 एकड़ जमीन का अधिग्रहण शुरू हुआ और कहा गया जिस मौजे के जमीन का मूल्य अधिक होगा उसी अनुसार मुआवजा राशि मिलेगा. हमलोग किसान समझ नहीं पाए. उस समय 9200 डिसमिल जमीन का मूल्य चल रहा था जिसे चौगुना करके देना था लेकिन वे दे नहीं पाए. हमलोगों को 6600 डिसमिल के हिसाब से पैसा दिया गया और हमलोगों ने ले लिया.”

अब यहां प्रश्न उठता है कि जब किसानों ने मुआवजे की राशि उस समय सरकार से ले ली तब दुबारा विरोध क्यों शुरू किया? नरेंद्र तिवारी कहते हैं “पावर प्लांट बिठाने वाली कंपनी तो अपना काम कर ही रही है लेकिन उसी दौरान रेल कॉरिडोर और वाटर पाइपलाइन बिछाने वाली कंपनी अतिरिक्त 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण शुरू कर दी जिसकी हमें न तो जानकारी है और ना ही मुआवजा मिला है. जबकि कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने इस जमीन का पैसा भी 2012-13 में ही सरकार को दे दिया है.”

किसानों ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया रोकते हुए कहा कि वह पुराने दर पर मुआवजा नहीं लेंगे. इसी मुद्दे को लेकर कंपनी और किसानों के बीच ठनी हुई है. किसानों का आरोप है कि कंपनी के अधिकारियों ने पुलिस प्रसाशन यहां तक कि सरकार को भी खरीद लिया है. नरेंद्र तिवारी आरोप लगाते हुए कहते हैं “कंपनी ने अधिकारियों यहां तक कि सरकार भी को खरीद लिया है. बल प्रयोग करके वह जबरदस्ती हमारी जमीन हथियाना चाहती है. जबकि हम यहां 17 अक्टूबर 2022 से धरना दे रहे हैं. उस समय हमलोगों शांतिपूर्ण ढ़ंग से लगातार 86 दिन धरना दिया था. पिछले वर्ष जब हमारे कुछ साथी किसान जबरदस्ती जमीन नहीं लेने के मामले में बात करने गये, तो हमारे पांच किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया.”

परियोजना का विवाद और आन्दोलन से पुराना नाता 

जब से इस थर्मल पावर प्लांट (thermalplant) के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण का सिलसिला शुरू हुआ है तभी से विवादों का दौर भी शुरू हो गया है. दरअसल, यह थर्मल पावर प्लांट केंद्र सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम है. साल 2012-13 में इस परियोजना पर विचार शुरू किया गया था. साल 2015 में इसके निर्माण का जिम्मा भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार की स्वामित्व वाली मिनी रत्न कंपनी ‘सतलज जल विद्युत निगम’ (एसजेवीएन) को दी गयी.

बिहार थर्मल प्लांट और किसानों की मांग

एसजेवीएन ने इस परियोजना को पूरा करने की जिम्मेवारी अपने स्वामित्व वाली कंपनी एसजेवीएन थर्मल पावर (एसटीपीएल) को दिया है. कंपनी ने लगभग 11 हजार करोड़ रूपए की लागत से 1,058 एकड़ जमीन पर इसका काम शुरू किया था. पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी. जिसे 2023 के अंत तक पूरा किये जाने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन कभी किसान तो कभी मजदूरों के आन्दोलन ने इस प्रोजेक्ट की लागत और समय सीमा दोनों को बढ़ा दिया है.

इस बीच पुलिस प्रशासन की किसानों के ऊपर कठोर कार्रवाई ने प्रशासन और सरकार को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. बीते साल जनवरी महीने में भी पुलिस नामजद किसानों को गिरफ्तार करने के लिए रात में घर में घुसी थी. इस बीच बीच-बचाव करने आये बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं पर लाठीचार्ज किया गया था. 

किसानों पर हुए इस बर्बर कार्रवाई को लेकर एक समय नीतीश सरकार को धृतराष्ट्र बताने वाली केंद्रीय सरकार और मंत्री आज फिर नीतीश कुमार के साथ है. किसानों और मजदूरों की बात करने वाली सरकार अपने-अपने फायदे के लिए एक दूसरे का हाथ पकड़ने और छोड़ने में लगी हैं. लेकिन अपना हक मांगने वाली जनता चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, छात्र हो या आम आदमी हो वह पुलिस और प्रशासन की लाठियां खा रही है.

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